( तर्ज भले वेदांत पछाने हो ० )
बंदे ! सावध होना है ,
नही तो आखिर रोना है || टेक||
इस दुनियामें कौन रहा है
किसके खातिर जीना ? ।
बडे बडे जो पीर - अवलिया ,
उनका नही ठिकाना ॥१ ॥
साधु संत और योगि तपस्वी ,
उनको लगी समाधी ।
खाक हुआ है चोला जलकर ,
टूटी सारी व्याधी ॥ २ ॥
कालका दर्गा बड़ा जबर है ,
सबको अंदर लेता ।
जैसे करनी वैसी भरनी ,
फल सबहीको देता ॥३ ॥
कहता तुकड्या , गुरु- भजनसे ,
हो जाओ भवपारा ।
लगाओ धूनी दिलके अंदर ,
तोड़ सकल परिवारा ॥४ ॥
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